राज्य का महाधिवक्ता - मध्यप्रदेश - State Advocate General - Madhya Pradesh
हेलो दोस्तों हम आज भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण पोस्ट राज्य का महाधिवक्ता से लेकर एक महत्वपूर्ण लेख लेकर आ रहे हैं इस लेख में महाधिवक्ता की सभी बेसिक जानकारी को हम देखेंगे जो आपकी परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होगा .[ राज्य का महाधिवक्ता - मध्यप्रदेश State Advocate General - Madhya Pradesh ] राज्य का महाधिवक्ता अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण विषय है इसलिए इससे संबंधित जानकारी या लेख हम लेकर आ रहे हैं
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मध्य प्रदेश की राज्य व्यवस्था - राज्यपाल
महाधिवक्ता किसे कहते हैं
महाधिवक्ता एक ऐसा पद है जिसकी नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है यह व्यक्ति राज्य में विधि संबंधी कानून पर अपना मत देता है यह पद राज्यपाल के प्रसाद अनुसार बना रहता है और जब राज्यपाल चाहे उस व्यक्ति को उस पद से हटा सकता है इस पद में व्यक्ति सामान्य कानून से संबंधित सभी जानकारियों को सरकार को देता है
राज्य का महाधिवक्ता
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार राज्यपाल द्वारा महाधिवक्ता की नियुक्ति की जाती है यह राज्य का सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसाद अनुसार कार्य करता है राज्यपाल उसे कभी भी उसके पद से हटा सकता है और वह उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनने की क्षमता या योग्यता भी रखता है।
राज्य महाधिवक्ता के कार्य
महाधिवक्ता राज्य प्रमुख को विधि संबंधी सलाह देने का कार्य करता है वह राज्य के दोनों सदनों विधान सभा तथा विधान परिषद की कार्यवाही में तथा सदन में बोलने की शक्ति रखता है लेकिन वह इसमें अपना मत नहीं रख सकता है उसे विधान मंडल के सदस्यों को मिलने वाले सभी वेतन भत्ते एवं विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं जिस प्रकार से भारत के सभी राज्यों में महाधिवक्ता होते हैं राज्य में जो महाधिवक्ता की स्थिति होती है वही स्थिति केंद्र में महान्यायवादी की होती है।
राज्य के महाधिवक्ता के पद की मूल विशेषता
- राज्य महाधिवक्ता का पद केवल भारत के नागरिक ही इसके योग्य होते हैं
- विदेशी नागरिक इस पद के योग्य नहीं माने जाते हैं
- राज्य महाधिवक्ता किसी भी राज्य की अदालत में जाकर खड़ा हो सकता है।
- उसे विधानमंडल या विधानसभा में मत देने का अधिकार नहीं है लेकिन वह उसमें प्रक्रिया में भाग ले सकता है।
- राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति राज्यपाल करता है।
- महाधिवक्ता को एक न्यायाधीश के रूप में सेवा करने के योग्य होना चाहिए।
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए और पिछले 10 वर्ष उच्च न्यायालय में कार्य किया होना चाहिए ।
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